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मेरा यह लेख मेरे उन मित्रों को समर्पित है जिन पर बाजारवादी संस्कृति का भीषण असर देखने को मिलता है | बात-बात पर ब्रांड्स के नाम गिनवाना और अपने कपड़ो के ब्रांडेड टैग्स दिखाना जिनके दैनिक कार्यों में सुमार है | जिनका मानना है की तन को ब्रांडेड कपडों का स्पर्श हीं मन को सुकून दिलाता है | ब्रांडेड कपडें ह्रदय को आनंदित और आत्मविश्वास से भर देते हैं | जिनकी दृष्टी में साधारण और कम दाम के कपड़े पहनने वाले लोग हेय हैं | बड़े आश्चर्य की बात है की ब्रांडेड वस्तुयें आत्मविश्वास जगाने या बढ़ाने का जरिया हो गई हैं |
बहुत अजीब लगता है जब ब्रांडेड वस्तुए मानक हो जाती हैं, किसी व्यक्ति के सम्माननित या तिरस्कृत होने को तय करने के लिए | बाजारवाद लोगो के मन-मस्तिष्क पर इस कदर हावी होगया है की उन्हें इससे हट कर कुछ दिखता ही नहीं | और इसका एक सबसे बड़ा कारण है वस्तुओं के चकाचौंध विज्ञापन जिनकी प्रकाश सामान्य से सामान्य व्यक्ति की आखों को चौधिया जाती है और विचारों पर आक्रमण करके उन्हें पंगु बना देती है | यही कारण है की लोग अब संस्कारों की अपेक्षा स्टाइल को, गुण की अपेक्षा स्टेटस को और परंपरा की जगह फैशन को अधिक तवज्जो देने लगे हैं |
आज व्यक्ति का वस्तुओं के साथ इस प्रकार जुड़ाव होगया है की वह व्यक्ति-व्यक्ति के संबंधों को भूल वस्तुओं के साथ ही अपना निकटतम संबंध स्थापितं कर रहा है | संयुक्त परिवार एकल परिवारों में और एकल परिवार एकाकीपन में बदल रहे हैं | मित्रों के बीच अपनत्व और सहयोग की जगह ‘मस्ती’ और ‘टाइमपास’ की भावना स्थान ले रही है | एक वास्तु के पचासों ब्रांड, अनेक विशिष्टताएं, अनेक गुण और बाज़ार पर छा जाने का होड़ लगा है, और लोग भी अपने विचारों के घोड़े इन्ही के पीछे दौड़ा रहे हैं, वास्तविक जीवन को पतन की ओर ले जा रहे हैं |
वस्तुओं का ब्रांड व्यक्ति की श्रेष्टता तय करे ये बात मुझे तो बिल्कुल बकवास लगती है और अगर किसी को नहीं लगती तो वो इतिहास पलट कर देख सकता है, की लोगों ने अपने पहनावे से नहीं, बल्कि अपने कर्मों से महानता की मुकाम को पाया है | अगर महान विभूतियां पहनावे से जानी जाती तो शायद ही हम महात्मा गाँधी, राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, मदर टेरेसा, चंदशेखर आजाद आदि के नाम को याद रखते | लेकिन ऐसा नहीं है हम आज भी उन्हें अगाध श्राद्धा से याद करते हैं, क्योंकी इन महापुरुषों में ज्ञान, देशभक्ति, त्याग, दया और सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी थी, ये अनंत गुणों के भंडार थे | व्यक्ति का लक्ष्य वस्तुओं की प्राप्ति नहीं, बल्कि वस्तुएं व्यक्ति के लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होनी चाहिए |
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