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जब नानी के घर हम जाते हैं
सभी के ज़ुबाँ पे छा जाते है
खूब बदमाशी, खूब शरारत करते दिन कट जाते हैं
क्या छोटे, क्या बड़े सभी से हम भीड़ जाते हैं
कोई पकड़े उससे पहले आँखो से ओझल हो जाते हैं
जब नानी के घर हम जाते हैं
पशुओं की सेवा में जुट जाते हैं
उन्हें खिलाना, उन्हें पिलाना इसी में खो जाते हैं
खेतों और खलिहानों के हम चक्कर खूब लगाते हैं
भैंस पर बैठ हम उन्हें चराने जाते हैं
जब नानी के घर हम जाते हैं
दूसरों के बाग बगीचे भी आपने हीं नज़र आते हैं
कभी आम, कभी लीची खा-खा के उब जाते हैं
सरिफा और सतालु को हम बड़े चाव से खाते हैं
दूध, मलाई, मक्खन और पेड़ा का भी भोग लगते हैं
जब नानी के घर हम जाते हैं
पढ़ाई के बोझ से मुक्ति हम पाते हैं
सभी भाई-बहनों संग खूब धमा-चौकरी मचाते हैं
नाना-नानी, मामा-मामी से हम खूब दुलार पाते हैं
पूरी की पूरी छुट्टी हम यूहीं मस्तीयों में बिताते हैं
जब नानी के घर हम जाते हैं
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