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मैं बस मैं हूँ

मेरे डायरी के कुछ पन्ने
मेरे डायरी के कुछ पन्ने
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मै ग़ालिब तो नहीं,
जो अपने महबूबा के लिए गज़लें लिख सकूँ |
मै वैसा भी कहाँ,
जो उन्हें चाँद और तारें दे सकूँ |
नहीं मै महबूब मुमताज का,
जो बनवा सकूँ ताज |
मेरी शख्सियत भी राँझा या रोमियो सी नहीं,
जो इतिहास में आपनी मोहब्बत-ए-दस्ता दर्ज करा सकूँ |
मगर मैं जो भी हूँ,
इन सबो से कम नहीं |
भले ही मेरे पास भावनाओं का समंदर ना हो,
मगर मेरी मोहब्बत ईमानदार जरूर है |
देने को उन्हें मेरे पास कुछ भी नहीं,
मगर हर पल, उनकी कदमों में हाजिर मेरी जान जरूर है |
मेरी मोहब्बत का कोई प्रमाण नहीं,
मगर मेरी आखें हीं मोहब्बत बयाँ करती है, इसका गुमान जरूर है |
मोहब्बत मेरी कोई मिसाल नहीं,
मगर मेरी मोहब्बत विशाल जरूर है ||

तुम्हारा-अविनाश

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