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भूखी जनता, भूखी सरकार

मेरे डायरी के कुछ पन्ने
मेरे डायरी के कुछ पन्ने
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जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जायेगा सभी राजनितिक पार्टीयाँ जनता के प्रति अपनी संगिदगी दर्ज करते की रफ़्तार को तेज़ी देती दिखने लगेंगी | उलटे-पुल्टे और बेतुका बयान देने वाले नेता भी हमारे बारे में बात करते दिखने लगेंगे | हमारे सारे समस्याओं को पुरे देश की समस्या बता कर हमे झूठें वादों की बारिश से भींग्गो कर छनिक शीतला पर्दान करने में जुट जाएगे | मौजूदा वक्त में देश में करीब बत्तीस करोड़ लोग एक वक़्त भूखे सोने को मजबूर है, लगभाग एक तिहाई आबादी भूखी और कुपोषित है | युपीए के हिसाब से इस भुखमरी और कुपोषण से निजात दिलने की एक मात्र रामबाण और युपीए के 2009 चुनावी वादों का हिस्सा रहा खाद्य सुरक्षा विधेयक (जिसमे कहा गया था की सत्ता में दोबारा आने पर हर परिवार को बेहद सस्ती दर पर 25 किलो अनाज़ हर महीने मुहैया कराया जायेगा) को हाल हीं में चुनाव आने से लगभग एक साल पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी है | इस योजना से संबंधित विधेयक में देश की 75 फीसदी ग्रामीण और 50 फीसदी शहरी आबादी को हर महीने प्रतिव्यक्ति पांच किलो अनाज पाने का कानूनी अधिकार देने का प्रावधान किया गया है | इसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए लाभार्थि परिवारों को चावल तीन रुपए, गेहूं दो रुपए और मोटा अनाज एक रुपए प्रति किलो के दर से उपलब्ध कराया जाएगा | हालांकि अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले करीब 2.43 करोड़ बेहद गरीब परिवारों को प्रति परिवार 35 किलो अनाज देने का कानून है | इस विधेयक की सबसे खास बात यह है की इसमे सभी गर्ववती महिलालों को बच्चे के जन्म से 6 महीने पहले और बाद तक नजदीकी आंगनवाड़ी केद्रंओं पर मुफ्त खाना खिलाया जाएगा साथ हीं साथ महिलाओं को पोषण के लिए 6 महीने तक प्रतिमाह 1000 रुपए देने की भी बात कही गई है | इसके अलावा उस महिला को दो वर्षो तक प्रतिमाह पांच किलो अतिरिक्त खाद्यान्न देने का भी प्रावधान किया गया है |
लोकलुभावन सा दिखने वाला ये खाद्य सुरक्षा बिल हमारे लिए कितना लाभकारी होगा ये तो समय बातएगा, मगर अभी हम बात करेगें इस बिल में दिखते दरारों की, दिसंबर, 2011 में लोकसभा में पेश किया गया मूल विधेयक को देखे तो हम पाएगे की प्राथमिक यानी बीपीएल परिवारों को प्रतिमाह सात किलो अनाज(चावल तीन रुपए, गेहूं दो रुपए और मोटा अनाज एक रुपए प्रति किलो के दर से) और सामान्य यानी एपीएल परिवारों को प्रतिमाह कम से कम तीन किलो अनाज आधे दामों पर देने की बात कही गई थी | लेकिन प्रस्तावित विधेयक के तहत एपीएल परिवारों को बीपीएल परिवारों की तुलना में अनाज की मात्रा और मूल्य दोनों के लिहाज से ज्यादा फायदा होगा | अगर हम गौर फरमाएं पोषण से जुड़ी कई संस्थाओं के आकलन पर तो हमें देखने को मिलेगा की एक वयस्क व्यक्ति को परर्याप्त पोषणाहार के लिए प्रतिमाह बारह से चौदह किलो अनाज के साथ-साथ डेढ़ किलो दाल और आठ सौ ग्राम खाद्य तेल की जरुरत पड़ती है | लेकिन सरकार हमे केवल पांच किलो अनाज (वो भी प्रोटीन के लिए जरुरी दाल और वसा की जरुरत पूरा करता खाद्य तेल से मुक्त) देकर स्वास्थ्य और तंदरुस्त भारत का सपना दिखा रही है | इस कानून को लागू करने में सरकार पर पहले साल हीं एक लाख बीस हजार करोड़ रुपए सबसिडी का बोझ आएगा, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग तीस हजार करोड़ रुपए आधिक है | तो एक बड़ा सवाल यह है की इतनी बड़ी योजना के लिए पैसे कहां से आएगा | साथ हीं साथ हर साल लगभग छह करोड़ टन अनाज की आवश्यकता होगी | प्रकृति की पटखन के साथ-साथ महंगाई की मार झेल रही हमारी खेती भी अन्न उत्पादन पर बुरा प्रभाव डालती दिख रही है | तो ऐसे हालत में अनाज की उपलव्धता के लिए आयत पर निर्भरता बढ़ेगी और इससे घरेलू और विदेशी दोनों बिचौलियों को फायदा होगा | बात बुराईयां गिनवाने की हो रही हो तो हम अपने देश की सर्वजनिक वितरण प्रणाली यानि पीडीएस को कैसे छोड़ सकते हैं | सर्वजनिक वितरण प्रणाली में कालाबाजारी, भ्रष्टाचार, और ‘लीकेज’ जैसी खामियां हमेसा से जगजाहिर है | पीडीएस का अनाज राज्य के गोदाम तक तो किसी भी तरह पहुंच जाता है, लेकिन राशन दुकानों तक नहीं पहुंच पता | इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक अलग-अलग राज्य इसे लागू करने के लिए अलग-अलग समय निर्धारित कर सकते है | उनके अपने प्रावधान होंगे | यानी केंद्र सरकार ने बहुत कुछ राज्य सरकारों के भरोसे छोड़ दिया है| लाचार अर्थव्यवस्था होने के कारण राज्यों ने आपति जताते हुए कानून के लागू होने से पहेले आपने ऊपर पड़ने वाले आतिरिक्त भार के आकलन को तय करने की बात कही है | और यही कारण है की इसे पूर्ण रूप से लागू करने में अड़चनें आरहीं है |

इन जैसी कई और कारण और सवाल हैं जो इस खाद्य सुरक्षा विधेयक को कमज़ोर बनते हैं | अगर ये सरकार हमारे इस खाद्य सुरक्षा विधेयक के प्रति इतनी हीं संगिदा होती तो सुप्रीमकोर्ट के प्रतिव्यक्ति सात किलो अनाज मुहैया कराने के निर्देश को ताख पर नहीं रख देती | सरकार द्वारा कॉर्पोरेट जगत को हर साल कररियायतों के तौर पर दी जा रही छह लाख करोड़ रुपए की राशि इस योजना पर खर्च की जाने वाली राशि की तुलना में कई गुणा अधिक है, इस के बाबजूद भी भूख से मुक्ति के कानून के लिए पैसे नहीं है की भी बात कही जा रही है | इससे ये साफ जाहिर होता है की वोट की भूखी यूपीए सरकार भुखमरी और कुपोषण के मूल कारणों और सवालों को नज़रअंदाज कर सिर्फ अपने लिए वोट की राजनीती करने में लगी है |

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